हिंदी भाषा को सीखने और समझने के लिए हिंदी वर्णमाला (Hindi Varnamala Worksheets) को समझना बहुत ज़रूरी है|
बच्चो! हिंदी वर्णमाला की उत्पत्ति ब्राह्मी लिपि से हुई है, जो भारत की प्राचीन लिपियों में से एक है। ब्राह्मी लिपि का विकास चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में हुआ था।
हिंदी वर्णमाला हिंदी भाषा के विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह भाषा को लिखने और पढ़ने में मदद करती है। हिंदी वर्णमाला के बिना, हिंदी भाषा का विकास संभव नहीं होता।
वर्णमाला को पढ़ने और समझने से पहले हमें वर्ण के बारे में जानना चाहिए आओ बताते हैं
वर्ण किसे कहते हैं (Varn Kise Kahate Hain)
ध्वनी का वह सबसे सूक्ष्म रूप जिसे ओर आगे विभाजित नहीं किया जा सकता, इसी ध्वनी को लिखने के लिए हम कुछ चिन्हों का उपयोग करते हैं जिन्हें हम हिंदी लिपि के नाम से भी जानते हैं, तो उन्हें ही हम वर्ण कहते हैं. जैसे की क,ख, ग इत्यादि|
हिंदी वर्णमाला (Hindi Varnamala)
किसी भी भाषा को बोल कर दूसरो को समझाया जा सकता है हम जो बोलते हैं उसे ध्वनि कहते हैं ध्वनि के माध्यम से हम अपने विचारों और भावनाओं को दूसरों के सामने प्रकट करते हैं यदि हम इन्हीं विचारों और भावनाओं को लिखना चाहे तो हमें चिन्हों की आवश्यकता पड़ती है इन्हीं चिन्हों को वर्ण कहते हैं और इन्हीं वर्णों के व्यवस्थित समूह को वर्णमाला कहते हैं|
Hindi varnamala pdf हिंदी वर्णमाला के 52 अक्षर (Hindi Varnamala Chart PDF)
Hindi Varnamala 52 Words pdf
हिंदी वर्णमाला के भेद
बच्चों हिंदी में जो हमारी वर्णमाला होती है उसको दो भागों में बांटा गया है इसमें कुछ वर्णन स्वर में आते हैं और कुछ वर्णन में आते हैं स्वर और व्यंजन को मिलकर ही वर्णमाला कहा जाता है
- स्वर (Swar)
- व्यंजन (Vyanjan)
स्वर किसे कहते हैं (Savar Kise Kahate Hain)
स्वर ऐसी ध्वनी होती हैं जिनके उच्चारण के लिए किसी दूसरे वर्ण की सहायता की आवश्यकता नहीं होती है या स्वतंत्र रूप से बोले जाने वाले वर्ण ,स्वर (Vowels) कहलाते हैं। हिंदी वर्णमाला (Hindi Varnmala) में 11 होते है।
स्वर के उदाहरण : अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ,औ |
हिंदी स्वर की मात्रा (Hindi Swar Ki Matra)
अ – कोई नहीं
आ – ा
इ – ि
ई – ी
उ – ु
ऊ – ू
ऋ – ृ
ए – े
ऐ – ैै
ओ – ो
औ – ौ
हिंदी वर्णमाला (Hindi Varnamala) में मात्रा के आधार पर स्वरों की संख्या 10 है।
स्वर वर्ण के भेद – Swar Ke Bhed
ह्रस्व स्वर : जिस वर्ण के उच्चारण में सबसे कम समय लगता है उन्हें (एक मात्रा का), ह्रस्व स्वर कहते है।जैसे – अ, इ, उ तथा ऋ|
दीर्घ स्वर : जिन वर्णो के उच्चारण में ह्रस्व स्वर से दुगना समय लगे, उसे द्विमात्रिक या दीर्घ स्वर कहते है।
जैसे- आ ई ऊ ऋ ए ऐ ओ औ|
प्लुत स्वर : जिन वर्णो के उच्चारण में सबसे अधिक समय (दीर्घ स्वर से भी ज्यादा) लगता है। सामन्यतः इसके उच्चारण में एक मात्रा का तिगुना समय लगता है। जैसे – बाप रे ! रे रमा !
स्वरों वर्ण का उच्चारण स्थान
हिंदी व्याकरण में स्वरों का वर्गीकरण निम्न है।
स्वरों वर्ण का उच्चारण स्थान
स्वर | उच्चारण स्थान |
अ, आ | कंठ | |
इ, ई | तालु | |
उ, ऊ | ओष्ठ | |
ऋ | मूर्धा | |
ए, ऐ | कंठ – तालु | |
ओ, औ | कंठ – ओष्ठ | |
व्यंजन वर्ण (Vyanjan in Hindi Varnmala)
उन वर्णो को व्यंजन वर्ण कहा जाता है जिनका उच्चारण स्वर वर्णों की सहायता से होता हैं।
व्यंजन वर्ण के उदाहरण – क, ख, ग, घ आदि
हिंदी वर्णमाला में कितने व्यंजन होते हैं (How Many Vyanjan in Hindi Varnmala)
हिंदी भाषा की वर्णमाला में व्यंजनों की संख्या 33 है। इसके अलावा 4 संयुक्त व्यंजन होते हैं इन व्यंजन वर्णों का उपयोग हिंदी भाषा को लिखने और बोलने के लिए किया जाता है।
हिंदी व्यंजन की मात्रा (Hindi Vyanjan Ki Matra)
व्यंजनों का वर्गीकरण
Hindi Varnmala में उच्चारण स्थान के आधार पर व्यंजन का वर्गीकरण निम्न है –
- कण्ठ्य – क ख ग घ ङ ह
- तालव्य – च छ ज झ ञ य श
- मूर्धन्य – ट ठ ड ढ ण ष र
- दन्त्य – त थ द ध न ल स
- ओष्ठ्य – प फ ब भ म
- दन्तोष्ठ – व
- अनुनासिक – ङ ञ ण न म
कण्ठ्य व्यंजन (Kanth Vyanjan)
हिंदी वर्णमाला में जिन व्यंजन वर्णों का उच्चारण कंठ से होता है, इनमे होंठ खुले रहते है उन्हें कण्ठ्य व्यंजन (Kanth Vyanjan) कहते हैं। उदाहरण हिंदी में क, ख, ग, घ, ङ, क़, ख़, ग़ इत्यादि|
तालव्य व्यंजन
इन व्यंजनों का उच्चारण करते समय, जीभ का पिछला भाग तालू को छूता है, लेकिन पूरी तरह से तालू को बंद नहीं करता है। इससे हवा थोड़ी सी खुली जगह से होकर गुजरती है, जिससे एक ध्वनियों का निर्माण होता है। उदाहरण च,छ,ज,झ,ञ इत्यादि|
मूर्धन्य व्यंजन
इन व्यंजनों का उच्चारण करते समय, जीभ का भाग तालु को छूता है, लेकिन पूरी तरह से तालु को बंद नहीं करता है। इससे हवा थोड़ी सी खुली जगह से होकर गुजरती है, उन्हें तालव्य व्यंजन कहते हैं| उदाहरण च, छ, ज, झ, ञ, श, य इत्यादि को तालव्य व्यंजन कहते हैं
दन्त्य व्यंजन
दन्त्य व्यंजन वे व्यंजन हैं जिनका उच्चारण जीभ के अगले भाग को दांतों से संघर्ष करके किया जाता है। दन्त्य व्यंजन के लिए जीभ का अगला भाग दांतों को छूता है, लेकिन पूरी तरह से दांतों को बंद नहीं करता है। इससे हवा थोड़ी सी खुली जगह से होकर गुजरती है, जिससे एक ध्वनियों का निर्माण होता है।
उदाहरण त,थ,द,ध,न इत्यादि|
ओष्ठ्य व्यंजन (Osthya Vyanjan)
ओष्ठ्य व्यंजन वे व्यंजन हैं जिनका उच्चारण होंठों को संघर्ष करके किया जाता है। ओष्ठ्य व्यंजन के लिए होंठ एक-दूसरे को छूते हैं, लेकिन पूरी तरह से बंद नहीं होते हैं। इससे हवा थोड़ी सी खुली जगह से होकर गुजरती है, जिससे एक ध्वनियों का निर्माण होता है।
उदाहरण प, फ, ब, भ, म इत्यादि|
दंतोष्ठ्य व्यंजन (Dantoshthya Vyanjan)
दंतोष्ठ्य व्यंजन वे व्यंजन होते हैं जिनका उच्चारण ऊपर के दाँतों और होंठों के संयोग से होता है। उदाहरण के लिए, हिंदी के व्यंजन “ब” और “म” दंतोष्ठ्य व्यंजन हैं।
काकल्य व्यंजन
काकल्य व्यंजन वे व्यंजन हैं जिनका उच्चारण गले के पिछले हिस्से को संघर्ष करके किया जाता है। काकल्य व्यंजन के लिए, स्वरयंत्र, जो गले के पिछले हिस्से में स्थित होता है, को बंद किया जाता है। इससे हवा को गुजरने से रोका जाता है, जिससे एक ध्वनियों का निर्माण होता है। ह, ङ, ञ
संयुक्त व्यंजन
क्ष, त्र, ज्ञ, श्र व्यंजनों को संयुक्त व्यंजन कहते हैं, क्योंकि इन वर्णों को दो व्यंजनों के योग से बनाया गया है।
- क्ष = क् + ष
- त्र = त् + र
- ज्ञ = ग् + य
- श्र = श् + र
Hindi Varnamala Worksheets – FAQs
स्वर और व्यंजन क्या हैं?
व्यंजन और स्वर भाषा के दो मुख्य भाग हैं। व्यंजन वे ध्वनियाँ हैं जिनका उच्चारण करते समय हवा का मार्ग किसी न किसी प्रकार से रुकावट का सामना करता है। स्वर वे ध्वनियाँ हैं जिनका उच्चारण करते समय हवा का मार्ग बिना रुकावट के निकलता है।
व्यंजनों के कितने प्रकार हैं?
व्यंजनों को विभिन्न आधारों पर कई प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है। इनमें से एक प्रमुख आधार है उच्चारण स्थान। इस आधार पर, व्यंजन को चार प्रकारों में बांटा जाता है:
ओष्ठ्य व्यंजन: इन व्यंजनों का उच्चारण होंठों को संघर्ष करके किया जाता है। उदाहरण: प, फ, ब, भ, म
दन्त्य व्यंजन: इन व्यंजनों का उच्चारण दांतों को संघर्ष करके किया जाता है। उदाहरण: त, थ, द, ध, न
तालव्य व्यंजन: इन व्यंजनों का उच्चारण तालू को संघर्ष करके किया जाता है। उदाहरण: ट, ठ, ड, ढ, ण
मूर्धन्य व्यंजन: इन व्यंजनों का उच्चारण मूर्धा को संघर्ष करके किया जाता है। उदाहरण: ट, ठ, ड, ढ, ण
व्यंजनों को उच्चारण विधि के आधार पर भी वर्गीकृत किया जा सकता है। इस आधार पर, व्यंजन को तीन प्रकारों में बांटा जाता है:
स्पर्श व्यंजन: इन व्यंजनों का उच्चारण किसी अवरोध की सीमा तक हवा का मार्ग बंद करके किया जाता है। उदाहरण: क, ख, ग, घ, च, छ, ज, झ, ञ
स्पर्शान्त व्यंजन: इन व्यंजनों का उच्चारण किसी अवरोध की सीमा तक हवा का मार्ग बंद करके और फिर उसे धीरे-धीरे छोड़ते हुए किया जाता है। उदाहरण: ट, ठ, ड, ढ, त, थ, द, ध, न
संयुक्त व्यंजन: इन व्यंजनों का उच्चारण दो या अधिक व्यंजनों के संयोग से किया जाता है। उदाहरण: क्ष, त्र, ज्ञ, श्र, छंद, बंध
स्वरों के कितने प्रकार हैं?
स्वर को उच्चारण स्थान के आधार पर दो प्रकारों में बांटा जाता है:
अग्र स्वर: इन स्वरों का उच्चारण मुंह के आगे किया जाता है। उदाहरण: अ, इ, ई, उ, ऊ
मध्य स्वर: इन स्वरों का उच्चारण मुंह के बीच में किया जाता है। उदाहरण: ए, ऐ, ओ, औ
स्वर को उच्चारण विधि के आधार पर भी दो प्रकारों में बांटा जाता है:
अघोष स्वर: इन स्वरों का उच्चारण बिना किसी आवाज के किया जाता है। उदाहरण: अ, ए, ओ
घोष स्वर: इन स्वरों का उच्चारण किसी आवाज के साथ किया जाता है। उदाहरण: इ, ई, उ, ऊ
स्वर और व्यंजन के बीच क्या अंतर है?
स्वर और व्यंजन के बीच मुख्य अंतर यह है कि व्यंजन का उच्चारण करते समय हवा का मार्ग किसी न किसी प्रकार से रुकावट का सामना करता है, जबकि स्वर का उच्चारण करते समय हवा का मार्ग बिना रुकावट के निकलता है।
स्वर और व्यंजन के उदाहरण क्या हैं?
व्यंजन के उदाहरण: क, ख, ग, घ, च, छ, ज, झ, ञ, ट, ठ, ड, ढ, त, थ, द, ध, न, प, फ, ब, भ, म
स्वर के उदाहरण: अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ
स्वर और व्यंजन की ध्वनि में क्या अंतर है?
व्यंजन और स्वर की ध्वनि में मुख्य अंतर यह है कि व्यंजन की ध्वनि में रुकावट महसूस होती है, जबकि स्वर की ध्वनि में कोई रुकावट महसूस नहीं होती है।
व्यंजन और स्वर के उच्चारण में क्या अंतर है?
व्यंजन और स्वर के उच्चारण में मुख्य अंतर यह है कि व्यंजन का उच्चारण करते समय हवा का मार्ग किसी न किसी प्रकार से रुकावट का सामना करता है, जबकि स्वर का उच्चारण करते समय हवा का मार्ग बिना रुकावट के निकलता है।
व्यंजन का उच्चारण करते समय हवा के मार्ग को बंद किया जाता है। यह बंदी जीभ, दांत, होंठ, या तालू द्वारा की जा सकती है। जैसे, “क” का उच्चारण करते समय जीभ को तालू से स्पर्श किया जाता है, जिससे हवा का मार्ग बंद हो जाता है। फिर, हवा को धीरे-धीरे छोड़ा जाता है, जिससे “क” की ध्वनि निकलती है।
स्वर का उच्चारण करते समय हवा का मार्ग बिना किसी रुकावट के निकलता है। जैसे, “अ” का उच्चारण करते समय जीभ, दांत, होंठ, या तालू किसी भी प्रकार से हवा के मार्ग को बंद नहीं करते हैं। हवा बिना किसी रुकावट के निकलती है, जिससे “अ” की ध्वनि निकलती है।
व्यंजन और स्वर के उच्चारण में कुछ अन्य अंतर भी हैं। उदाहरण के लिए, व्यंजन का उच्चारण करते समय होंठ, जीभ, या तालू की गति होती है, जबकि स्वर का उच्चारण करते समय होंठ, जीभ, या तालू की गति बहुत कम होती है।
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