vyakaran kise kahate hain : व्याकरण भाषा की रचना और व्यवस्था के नियमों का अध्ययन करने वाली शाखा है। यह भाषा के वाक्यों की रचना, उनके भेद, संरचना, संयोजन, विशेषताएँ और उनके अर्थ संबंधित नियमों का अध्ययन करती है। व्याकरण उपाध्यायों और भाषा शिक्षकों के लिए महत्वपूर्ण है ताकि वे भाषा के सही और सुगम उपयोग की सिखावट कर सकें।
व्याकरण किसे कहते हैं?
व्याकरण भाषा का वह अंग है जो भाषा की इकाइयों, जैसे- वर्ण, शब्द और वाक्य के निर्माण और उनके प्रयोग के नियमों का अध्ययन करता है। व्याकरण के अध्ययन से भाषा का सही और शुद्ध रूप से प्रयोग करना संभव होता है।
व्याकरण की परिभाषा निम्नलिखित प्रकार से दी जा सकती है:
- “व्याकरण भाषा की इकाइयों के स्वरूप, अर्थ और संबंधों का अध्ययन है।” – रामचंद्र वर्मा
- “व्याकरण भाषा के नियमों का अध्ययन है।” – सुनीति कुमार चटर्जी
- “व्याकरण भाषा की रचना और प्रयोग के नियमों का अध्ययन है।” – डॉ. नगेंद्र
व्याकरण के कितने भेद होते है?
- वर्ण
- शब्द
- पद
- वाक्य
वर्ण किसे कहते हैं – वर्ण की परिभाषा
भाषा की वह छोटी से छोटी इकाई जिसके टुकड़े न किए जा सके उसे वर्ण कहते हैं। जब हम बोलते हैं, तो हमारे मुख से जो ध्वनियों का उच्चारण होता है, उन्हें हम लिखित रूप देते हैं। इन ध्वनियों को जब हम लिखते हैं, तब इन्हें वर्ण कहा जाता है।
वर्ण कितने प्रकार के होते हैं?
वर्ण के दो प्रकार होते हैं:
- स्वर- वे वर्ण जो स्वतंत्र रूप से उच्चरित होते हैं, स्वर कहलाते हैं। जैसे, अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ।
- व्यंजन- वे वर्ण जो स्वरों के बिना उच्चरित नहीं होते हैं, व्यंजन कहलाते हैं। जैसे, क, ख, ग, घ, ङ, च, छ, ज, झ, ञ, ट, ठ, ड, ढ, ण, त, थ, द, ध, न, प, फ, ब, भ, म, य, र, ल, व, श, ष, स, ह।
शब्द किसे कहते हैं?
भाषा की वह छोटी से छोटी इकाई जो अर्थ व्यक्त करती है, शब्द कहलाती है। जब हम बोलते हैं, तो हम एक-दूसरे को समझाने के लिए शब्दों का प्रयोग करते हैं। शब्दों के बिना हम अपने विचारों को दूसरों तक नहीं पहुंचा सकते।
शब्द के निम्नलिखित लक्षण हैं:
- शब्द भाषा की छोटी से छोटी इकाई है।
- शब्द अर्थ व्यक्त करता है।
- शब्द स्वरों और व्यंजनों से मिलकर बनता है।
- शब्द वाक्य का निर्माण करता है।
शब्द के प्रकार दो प्रकार से बताए जा सकते हैं:
- रचना के आधार पर
- अर्थ के आधार पर
रचना के आधार पर शब्द के प्रकार
- मूल शब्द
- व्युत्पन्न शब्द
- संयुक्त शब्द
मूल शब्द वे शब्द हैं जो किसी दूसरे शब्द से नहीं बने हैं, जैसे: घर, पेड़, फूल, पानी, आदमी, आदि।
व्युत्पन्न शब्द वे शब्द हैं जो किसी दूसरे शब्द से किसी क्रिया या उपसर्ग के योग से बने हैं, जैसे: घरवाला, पेड़वाला, फूलवाला, पानीवाला, आदमीवाला, आदि।
संयुक्त शब्द वे शब्द हैं जो दो या दो से अधिक शब्दों के मेल से बनते हैं, जैसे: पुस्तकालय, विद्यालय, विश्वविद्यालय, आदि।
अर्थ के आधार पर शब्द के प्रकार
- संज्ञा
- सर्वनाम
- क्रिया
- विशेषण
- क्रियाविशेषण
- अव्यय
संज्ञा वे शब्द हैं जो किसी वस्तु, व्यक्ति, स्थान, या भाव का बोध कराते हैं, जैसे: पुस्तक, लड़का, घर, सुख, आदि।
सर्वनाम वे शब्द हैं जो संज्ञा के स्थान पर प्रयोग किए जाते हैं, जैसे: मैं, तुम, वह, यह, कौन, आदि।
क्रिया वे शब्द हैं जो किसी कार्य के होने या होने के भाव का बोध कराते हैं, जैसे: खाना, पीना, सोना, उठना, आदि।
विशेषण वे शब्द जो संज्ञा के गुण, धर्म, या अवस्था का बोध कराते हैं, जैसे: बड़ा, छोटा, अच्छा, बुरा, सुंदर, आदि।
क्रियाविशेषण वे शब्द जो क्रिया के प्रकार, समय, स्थान, या परिमाण का बोध कराते हैं, जैसे: धीरे, जल्दी, ऊपर, नीचे, अधिक, आदि।
अव्यय वे शब्द जो किसी वाक्य में किसी अन्य शब्द के साथ संबंध या सहायता करते हैं, जैसे: और, परंतु, इसलिए, आदि।
इनके अतिरिक्त, शब्दों के कुछ अन्य प्रकार भी हैं, जैसे:
- संख्यक- संख्या बताने वाले शब्द, जैसे: एक, दो, तीन, चार, आदि।
- कालवाचक- समय बताने वाले शब्द, जैसे: आज, कल, परसों, आदि।
- सम्बन्धवाचक- किसी शब्द या वाक्य से संबंध बताने वाले शब्द, जैसे: कि, तो, क्योंकि, आदि।
- प्रश्नवाचक- प्रश्न पूछने वाले शब्द, जैसे: क्या, क्यों, कैसे, आदि।
- उद्धरणवाचक- किसी बात को उद्धृत करने वाले शब्द, जैसे: “, ‘, आदि।
शब्दों का सही और सुंदर प्रयोग भाषा को प्रभावी बनाने में सहायक होता है।
शब्द अन्य दो प्रकार से भी होते है
- विकारी शब्द
- अविकारी शब्द
विकारी शब्द वे शब्द हैं जो लिंग, वचन, कारक, काल, या वाच्य के कारण किसी परिवर्तन से गुजरते हैं। इन शब्दों का प्रयोग वाक्य में किसी अन्य शब्द की विशेषता बताने या किसी कार्य को करने के लिए किया जाता है।
विकारी शब्द के निम्नलिखित प्रकार हैं:
- संज्ञा – किसी वस्तु, व्यक्ति, स्थान, या भाव का बोध कराते हैं, जैसे: पुस्तक, लड़का, घर, सुख, आदि।
- सर्वनाम – संज्ञा के स्थान पर प्रयोग किए जाते हैं, जैसे: मैं, तुम, वह, यह, कौन, आदि।
- क्रिया – किसी कार्य के होने या होने के भाव का बोध कराते हैं, जैसे: खाना, पीना, सोना, उठना, आदि।
- विशेषण – संज्ञा के गुण, धर्म, या अवस्था का बोध कराते हैं, जैसे: बड़ा, छोटा, अच्छा, बुरा, सुंदर, आदि।
विकारी शब्दों का प्रयोग वाक्य को अधिक अर्थपूर्ण और सजीव बनाने में सहायक होता है।
अविकारी शब्द वे शब्द हैं जो लिंग, वचन, कारक, काल, या वाच्य के कारण किसी परिवर्तन से नहीं गुजरते। इन शब्दों का प्रयोग वाक्य में किसी अन्य शब्द के साथ संबंध या सहायता करने के लिए किया जाता है।
अविकारी शब्द के निम्नलिखित प्रकार हैं:
- क्रियाविशेषण – क्रिया के प्रकार, समय, स्थान, परिमाण, या रीति का बोध कराते हैं, जैसे: धीरे, जल्दी, ऊपर, नीचे, अधिक, आदि।
- सम्बन्धबोधक – किसी शब्द या वाक्य से संबंध बताते हैं, जैसे: कि, तो, क्योंकि, आदि।
- समुच्चयबोधक – दो या दो से अधिक शब्दों, वाक्यांशों, या वाक्यों को जोड़ते हैं, जैसे: और, परंतु, या, आदि।
- विस्मयादिबोधक – किसी बात को आश्चर्य, प्रसन्नता, दुःख, आदि के भाव से व्यक्त करते हैं, जैसे: वाह! अरे! ओह! आदि।
अविकारी शब्दों का प्रयोग वाक्य को अधिक स्पष्ट और प्रभावी बनाने में सहायक होता है।
पद किसे कहते हैं उदाहरण सहित लिखिए?
पद भाषा की वह छोटी से छोटी इकाई है जो किसी अर्थ को व्यक्त करती है और वाक्य का एक अंग होता है। जब किसी सार्थक शब्द का प्रयोग वाक्य में होता है, तो उसे पद कहते हैं। सरल भाषा में समझे तो काल, वचन और लिंग आदि के वर्णो को पद कहा जाता है। कारक, वचन, लिंग, पुरुष इत्यादि में बँधकर शब्द ‘पद’ बन जाता है।
पद के निम्नलिखित लक्षण हैं:
- पद भाषा की एक इकाई है।
- पद अर्थ व्यक्त करता है।
- पद कारक, वचन, लिंग, पुरुष आदि के रूपों में प्रयुक्त होता है।
- पद वाक्य का अंग होता है।
पद के निम्नलिखित भेद हैं:
- संज्ञा पद– वे पद जो किसी वस्तु, व्यक्ति, स्थान, या भाव का बोध कराते हैं, संज्ञा पद कहलाते हैं। जैसे, राम, श्याम, सुख, दुख, आदि।
- सर्वनाम पद– वे पद जो संज्ञा के स्थान पर प्रयोग किए जाते हैं, सर्वनाम पद कहलाते हैं। जैसे, मैं, तुम, वह, यह, कौन, आदि।
- क्रिया पद– वे पद जो किसी कार्य के होने या होने के भाव का बोध कराते हैं, क्रिया पद कहलाते हैं। जैसे, खाना, पीना, सोना, उठना, आदि।
- विशेषण पद– वे पद जो संज्ञा के गुण, धर्म, या अवस्था का बोध कराते हैं, विशेषण पद कहलाते हैं। जैसे, बड़ा, छोटा, अच्छा, बुरा, सुंदर, आदि।
- क्रियाविशेषण पद– वे पद जो क्रिया के प्रकार, समय, स्थान, या परिमाण का बोध कराते हैं, क्रियाविशेषण पद कहलाते हैं। जैसे, धीरे, जल्दी, ऊपर, नीचे, अधिक, आदि।
- अव्यय पद– वे पद जो किसी वाक्य में किसी अन्य शब्द के साथ संबंध या सहायता करते हैं, अव्यय पद कहलाते हैं। जैसे, और, परंतु, इसलिए, आदि।
पद के अध्ययन को पद विचार कहते हैं। पद विचार में पद के प्रकार, अर्थ, कारक, वचन, लिंग, पुरुष आदि का अध्ययन किया जाता है।
पदों का सही और सुंदर प्रयोग भाषा को प्रभावी बनाने में सहायक होता है।
पद के कुछ अन्य महत्वपूर्ण भेद निम्नलिखित हैं:
- विकारी पद- वे पद जो कारक, वचन, लिंग, पुरुष आदि के रूपों में परिवर्तन करते हैं, विकारी पद कहलाते हैं। जैसे, राम, श्याम, खाना, पीना, आदि।
- अविकारी पद- वे पद जो कारक, वचन, लिंग, पुरुष आदि के रूपों में परिवर्तन नहीं करते हैं, अविकारी पद कहलाते हैं। जैसे, और, परंतु, इसलिए, आदि।
- मुख्य पद- वे पद जो वाक्य में स्वतंत्र अर्थ व्यक्त करते हैं, मुख्य पद कहलाते हैं। जैसे, राम खाता है।
- आश्रित पद- वे पद जो वाक्य में स्वतंत्र अर्थ नहीं व्यक्त करते हैं, आश्रित पद कहलाते हैं। जैसे, राम ने खाया।
पदों का सही और सुंदर प्रयोग भाषा को प्रभावी बनाने में सहायक होता है।
वाक्य किसे कहते हैं उदाहरण सहित लिखिए
वाक्य भाषा की वह इकाई है जो किसी अर्थ को व्यक्त करती है और इसमें कम से कम दो शब्द होते हैं। वाक्य को भाषा का मूल रूप भी कहा जाता है।
वाक्य के निम्नलिखित लक्षण हैं:
- वाक्य भाषा की सबसे बड़ी इकाई है।
- वाक्य अर्थ व्यक्त करता है।
- वाक्य में कम से कम दो शब्द होते हैं।
- वाक्य में मुख्य और आश्रित पद होते हैं।
- वाक्य में विराम चिन्ह होते हैं।
वाक्य के प्रकार निम्नलिखित हैं:
- साधारण वाक्य- वे वाक्य जो एक ही क्रिया से संबंधित होते हैं, साधारण वाक्य कहलाते हैं। जैसे, राम पढ़ता है।
- मिश्रित वाक्य- वे वाक्य जो दो या दो से अधिक क्रियाओं से संबंधित होते हैं, मिश्रित वाक्य कहलाते हैं। जैसे, राम पढ़ता है और लिखता है।
- संयुक्त वाक्य- वे वाक्य जो दो या दो से अधिक साधारण वाक्यों से मिलकर बने होते हैं, संयुक्त वाक्य कहलाते हैं। जैसे, राम पढ़ता है, परंतु श्याम नहीं।
- प्रश्नवाचक वाक्य- वे वाक्य जो प्रश्न पूछते हैं, प्रश्नवाचक वाक्य कहलाते हैं। जैसे, तुम कहाँ जा रहे हो?
- आदेशात्मक वाक्य- वे वाक्य जो किसी को कुछ करने के लिए कहते हैं, आदेशात्मक वाक्य कहलाते हैं। जैसे, जाओ, पढ़ो।
- विधानात्मक वाक्य- वे वाक्य जो किसी बात को बताते हैं, विधानात्मक वाक्य कहलाते हैं। जैसे, राम एक अच्छा लड़का है।
- विधानार्थक वाक्य- वे वाक्य जो किसी बात को बताने के लिए कहे जाते हैं, विधानार्थक वाक्य कहलाते हैं। जैसे, तुम यहाँ जाओ।
- विस्मयादिबोधक वाक्य- वे वाक्य जो किसी बात को आश्चर्य, प्रसन्नता, दुःख, आदि के भाव से व्यक्त करते हैं, विस्मयादिबोधक वाक्य कहलाते हैं। जैसे, वाह! यह तो बहुत अच्छा है।
- अनुज्ञावाचक वाक्य- वे वाक्य जो किसी को कुछ करने के लिए अनुमति देते हैं, अनुज्ञावाचक वाक्य कहलाते हैं। जैसे, तुम यहाँ आ सकते हो।
वाक्य के अध्ययन को वाक्य विचार कहते हैं। वाक्य विचार में वाक्य के प्रकार, अर्थ, रचना, और प्रयोग के नियमों का अध्ययन किया जाता है।
वाक्य का सही और सुंदर प्रयोग भाषा को प्रभावी बनाने में सहायक होता है।
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प्रश्नों के उत्तर: – vyakaran kise kahate hain
1. व्याकरण क्या है?
उत्तर: व्याकरण भाषा की रचना और व्यवस्था के नियमों का अध्ययन करने वाली शाखा है। यह वाक्यों, शब्दों, उपसर्गों, प्रत्ययों, विशेषणों आदि के नियमों की जांच करता है जो एक भाषा के सही और सुसंगत उपयोग को संरचित करते हैं।
2. व्याकरण का महत्व क्या है?
उत्तर: व्याकरण भाषा की सही और सुगम उपयोग की दिशा में महत्वपूर्ण है। यह हमें वाक्यों की संरचना, उनके भेद, संयोजन, विशेषताएँ आदि के बारे में सिखाता है, जिससे हम सही और प्रभावी भाषा का प्रयोग कर सकते हैं।
3. व्याकरण के कितने भेद होते हैं?
उत्तर: व्याकरण कई भेदों में विभाजित होता है जैसे कि वाक्यवाचक, पदवाचक, क्रियावाचक, सर्वनामवाचक, संज्ञावाचक, विशेषणवाचक, संबंधवाचक, अव्ययवाचक, निपातवाचक, क्रियापदवाचक, अलंकारवाचक, संधिवाचक आदि।
4. व्याकरण के क्या प्रमुख उद्देश्य होते हैं?
उत्तर: व्याकरण के प्रमुख उद्देश्य भाषा के सही और सुगम उपयोग को सुनिश्चित करना होता है। यह भाषा के नियमों का अध्ययन करके वाक्यों की संरचना को समझने में मदद करता है और लोगों को सही जानकारी प्रदान करने में सहायक होता है।
5. व्याकरण के किस प्रकार के नियम होते हैं?
उत्तर: व्याकरण के विभिन्न प्रकार के नियम होते हैं जैसे कि वाक्य रचना के नियम, पदवाचक नियम, क्रियावाचक नियम, संज्ञावाचक नियम, विशेषणवाचक नियम, संबंधवाचक नियम, अव्ययवाचक नियम, निपातवाचक नियम, क्रियापदवाचक नियम, संधिवाचक नियम आदि।